By: Pandit Narendra Sharma
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
आज से दो प्रेम योगी,
अब वियोगी ही रहेंगे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
सत्य हो यदि, कल्प की भी
कल्पना कर,
धीर बांधूँ,
किन्तु कैसे व्यर्थ की आशा लिये,
यह योग साधूँ!
जानता हूँ, अब न हम तुम मिल सकेंगे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
आयेगा मधुमास फिर भी,
आयेगी श्यामल घटा घिर,
आँख भर कर देख लो अब,
मैं न आऊँगा कभी फिर!
प्राण तन से बिछुड़ कर कैसे रहेंगे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?
अब न रोना, व्यर्थ होगा, हर घड़ी
आँसू बहाना,
आज से अपने वियोगी,
हृदय को हँसना सिखाना,
अब न हँसने के लिये, हम तुम मिलेंगे!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?