By: Rekha Maitr
कितनी नादान है औरत
शताब्दियों से पुरुष
सदियाँ अपने नाम करता रहा।
कभी गुलाम की सूरत में
हाटों-बाज़ारों में
भाजी-तरकारियों सी
वह बिकती रही।
कभी सम्पत्ति की तरह
दाँव पर लगती रही
अपने बचाव के लिए
किसी स्त्री देवी को नहीं
पुरुष देवता को ही
पुकारना पड़ा उसे।
स्वयं को सभ्य और सुसंस्कृत
सिद्ध करने वाला पश्चिम तक
उसे “माईवे और हाईवे”
कह कर धमकता रहा
फर, ये ‘नारी-दिवस’ के
दिखावे पर क्यों करे सन्धि?
नारी सदी की माँग क्यों न करे?
मैं समझ ही नहीं पाती